जै श्रीराम। जै श्रीराम। जै श्रीराम । जै श्रीराम।
जै जै श्रीराम
हमारा सौभाग्य है कि आज हम इस दुनियां में, एक बृहद समाज के रूप में उनकी 500 वर्षों से मंदिर बनाने और दर्शन करने के लिए संघर्षरत थे। जोकि अब पूर्ण होने जा रहा है।
आस्था की गहराई ये है कि, हर एक व्यक्ति, एक भक्त है, और हर एक भक्त, एक सहायक है उस परम तेजस्वी सनातन परमपिता परमेश्वर के मंदिर बनाने का, और दर्शन का अभिलाषी है ।
कई पीढ़ियां आयी और चली गई, लेकिन भक्ति भाव का समुंदर तब भी बहता था, अब भी बहता है। जन्म-मृत्यु की समय सीमा छोटी-सी हो गई, प्रभु प्रेम में तुलसी दास जैसे कई भक्त प्रभु नाम की ज्योति जगाते रहे।
निश्चिय ही प्रभु धाम के पावन तीर्थ के निर्माण के तैयारी बड़े जोरों पर है। भक्तों की श्रद्धा का ताँता पंक्तियों में है। भक्तों की भक्ति को प्रभु धाम बनाकर जीवंत बनाने वाली अपार कृपा का श्रेय भी महान पुरूषार्थ कर्मियों को जाएगा।
आज विश्व में प्रभु रामचंद्र जी को जितने लोग आराध्य मानते हैं। जितने लोग उनकी आस्था के मार्ग पर चलते हैं वे उत्सुक हैं। एक नई ज्योति उत्कृष्ठ होने लगी है। सौम्य स्वभाव के प्रभु का आवाहन होने लगा है।
मानव की कुंठित सोच ने, उस परमेश्वर को उनके घर से बेघर किया। वे तो मर्यादा के स्वामी हैं। सुख और दुख को नियंत्रित करने वाले परम त्यागी और तपस्वी हैं।
आज समय है, अयोध्यावासी प्रभू रामचंद्र अपने घर विराजमान हों। विश्व का सबसे समृद्धशाली एवम विशाल मंदिर उस प्रभु के जन्मस्थान में हो। इससे कल्याणकारी मार्ग और क्या हो सकता है।
जिस तरह से भक्तों ने अपनी-अपनी झोली से दान जुटाकर, मंदिर निर्माण के लिए सहयोग देना शुरू किया है उससे अनुमान लगाना मुश्किल नहीं कि वास्तव में उस परम पिता परमेश्वर के प्रति कितनी गहन भाव है भक्तों में।
भक्तिमय जीवन में एक अनोखा अनुभव जन्म ले रहा है। चारों दिशाएं दिव्यता का अनुभव दे रही हैं। संसार में प्रभु आसान स्थापित हो रहा है।
अंधकार के बाद दिव्यतापूर्ण प्रकाश उदित हो रहा है। युगों के बाद युग प्रवर्तक आसीन होने जा रहे हैं।
मैं अल्प ज्ञानी हूँ। मुझमें उस परम तेजस्वी, दिव्यात्मा, परमात्मा के स्वरूप का विवरण करने की क्षमता नहीं है। लेकिन एक तुच्छ भक्त के रूप में ही सही, मैं अपने मन के उद्गार आपके समुख रखना चाहता हूं।
ऐसे परम ज्योतिस्वरूप परमेश्वर के रूप का हम अंतःकरण से आह्वाहन करते हैं। आत्मा से, उस परमात्मा का मिलन तो एक भक्त के लिए आसान होता ही है।
अपने जीवन में, उस परमेश्वर की ज्योति को विखेरने की अभिलाषा में, कुछ शब्दों को आप बुद्धिजीवी जनमानस तक पहुचा रहा हूँ।
अपने मन मस्तिष्क को परमात्म में केंद्रित कर, उस परमधाम का आशीष लेता हूँ। अंत में जै श्री राम। जै श्रीराम। कहता हूं।
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अरुण गोविल जी जिन्होंने रामनंदसागर की रामायण में भगवान राम का जीवंत चरित्र का सम्पूर्ण रामायण में भूमिका निभाई, उनकी अयोध्या में मंदिर निर्माण की तैयारियों से उत्सुकता का अनुमान लगाया जा सकता है।
Click करें जानने के लिए।
जै श्रीराम।
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