यह एक ऐसा पर्व है जिसे हिन्दू धर्म में भाई की अपनी बहिनो के प्रति जिम्मेदारी का प्रतीक माना जाता है। इस पवित्र त्योहार में बहिनें अपने भाइयों को एक पवित्र धागा बांधकर उनकी अपने प्रति जिम्मेदारी और रक्षा की याद दिलाते हुए लम्बी उम्र की कामना करती हैं।
वहीं भाई भी एक पवित्र धागा बहिन के हाथ में बांधकर अपनी जिम्मेदारी को स्वीकार करते हैं।
ऐसा बौद्धिक और समृधिसूचक यह त्यौहार श्रावण मास में अर्थात अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार अगस्त मास में बड़े हर्ष और उल्लास से मनाया जाता है।
आज के समय जब समाज में अलग-अलग विरादरियों के लोग एक समाज के रूप में साथ रहते हैं।
जब लोगों की मानसिकता में अंतर को पाटने की जदोजहद स्पष्ट दिखाई दे रही हो। जब प्रशासनिक व्यवस्था और प्रशासनिक सेवाएं जनता के साथ जोड़ने की भरपूर कोशिश हो रही हों।
जब इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी का बोलबाला सिरमाथे पर हो।
जब लोग खाली समय में ऑनलाइन शॉपिंग, कॉउंसलिंग, मीटिंग, कांफ्रेसिंग, वीडियो कॉलिंग, चैटिंग, और लाइव कवरेज आदि चीजों में व्यस्त हो।
जब अंतराष्ट्रीय स्तर पर किसी महामारी का प्रकोप चल रहा हो। जब मुह पर मास्क, और सेनिटाइजर जिन्दगी के लिए जरूरी हो गए हो।
और जब बेरोजगार युवाओं के पास कोई काम न हो। सब लोग घर में कैद हो।
स्कूल, कॉलेज, सेरामोनीज़, सामाजिक कार्यक्रम, प्रतिष्ठान, मंदिर, गुरुद्वारे, मस्जिदें। सबकुछ बंद हो।
मानव मात्र का जीवन 20 का विष झेल रहा हो।
जब रक्षाबंधन का पवित्र धागा बंधने/भेजने/भिजवाने में विषाणु के संक्रमण का डर फैलाया जा रहा हो।
तब रक्षा बंधन जैसा पवित्र त्योहार आये तो अन्य वर्षों की भांति त्योहार का हर्ष नहीं रह जाता।
लेकिन किसी त्योहार को उसके क्रियाकलापों से जितना निभाया जाता है। उससे ज्यादा उसे मन, कर्म औऱ बचन से निभाया जाता है।
ऐसे पवित्र त्योहारों को लोग शिक्षा के भाव से अपने स्वभाव में लाने का प्रयास करते हैं।
रक्षाबंधन एक ऐसा ही त्योहार है। जिसे त्यौहार की क्रियाकलापों से निभाये जाने से ज्यादा मन, कर्म और बचन से निभाने की आज आवश्यक्ता है।
भारत जैसे बृहद जनघनत्व और विविधताओं से भरे देश में सरकारों द्वारा जनकल्याण के लिए किये गए प्रयासों का महत्वपूर्ण प्रभाव देखा जाता है। अथवा जनता को विवेकपूर्ण तरीके से संभालने की चुनौतियों सरकारों के ऊपर होती है।
जबकि पिछले वर्षों में देखा गया है कि समाज में सरकारों की व्यवस्थाओं का प्रभाव बढ़ाने के लिए प्रशानिक व्यवस्थाओ ने सामाजिक सुरक्षा को बेहतर करने के लिए, विभिन्न क्षेत्रों में जनता महत्वपूर्ण त्यौहारों को जन-महोत्सव बनाकर उस त्यौहार की विशेषता पर लोगों का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है।
निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है कि त्योहारों को पूर्व से ही जन-महोत्व के रूप में मनाया जाना चाहिए था। लेकिन इतिहास गवाह है कि विद्रोहियों ने भारतवर्ष पर कई बार आक्रमण किये। और देश को लूटा था।
अंततः यह कहना कि रक्षाबंधन एक पवित्र और ऐतिहासिक पर्व है, एक सुखद, समृद्ध और वृहद सोच का प्रतीक होगा।
इस ब्लाग के माध्यम से उन युवाओं को, जो कि लॉकडौन के चलते अपने घर नहीं पहुच सके न ही वो रक्षाबंधन का पवित्र धागा कोरियर करवा पा रहे हैं उनको ध्यान में रखते हुए सम्पूर्ण मानव समाज को रक्षाबंधन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
पूरा पढ़ने के लिए आपके शुभचिंतक का बहुत बहुत आभार।
जी हिन्द।
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